जहां जिला प्रशासन दावा कर रहा है कि “उड़ीसा से एक दाना भी अंदर नहीं आएगा”, वहीं दो ट्रक उड़ीसा मंडी काटकर थाने की नाक के नीचे से महाराष्ट्र निकल जाते हैं।
और अब इस मामले में एक नया सवाल जुड़ चुका है—
क्या मंडी अधिकारी भी इस खेल का हिस्सा थे?
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❗दरोगा की धमकी पर मंडी बैरियर कैसे खुला?
सूत्रों के मुताबिक—
जब मंडी कर्मचारियों ने ट्रक रोका, तो पुलिसकर्मी ने कृषि मंत्री से अपना सीधा कनेक्शन बताकर धौंस दी।
मोबाइल पर धमकी दिखाई गई।
और फिर—
‼️ मंडी बैरियर खुल गया।
‼️ ट्रक आराम से निकल गए।
अब यहां से सबसे बड़ा सवाल खड़ा होता है…
❓ मंडी के जिम्मेदार आखिर इतनी जल्दी झुक कैसे गए?
❓ क्या सिर्फ एक पुलिसकर्मी की धमकी से नियम टूट सकता है?
❓ मंडी अपनी नीति और नियमों पर कायम क्यों नहीं रही?
❓ क्या मंडी कर्मचारियों ने भी गाड़ी को निकलने दिया… मिलीभगत के चलते?
❓ क्या मंडी प्रभारी ने इस घटना की रिपोर्ट ऊपर भेजी या सब चुप्पी साध ली गई?
❓ जब मंडी में 3 महीने तक बाहरी धान लोडेड गाड़ी पर प्रतिबंध है—तो फिर यह “विशेष छूट” किसने और किसके दबाव में दी?
❓ क्या मंडी बैरियर पर तैनात कर्मचारी अपने पद पर रहते हुए इतनी आसानी से नियम तोड़ सकते थे… या फिर पीछे कोई और “बड़ी आवाज़” थी?
🚨 अब सवाल दो मोर्चों पर
1️⃣ दरोगा — जो कानून की ढाल लेकर कानून तोड़ रहा है
2️⃣ मंडी — जिसने नियमों के आगे घुटने टेक दिए… या कुछ और चल रहा था?
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🌾 धान खरीदी शुरू हो चुकी है, लेकिन विश्वास की खरीदी अभी बाकी है…
जब किसान उम्मीद के साथ उपार्जन केंद्रों की ओर जा रहा है,
तभी सिस्टम में मौजूद ऐसी मिलीजुली कार्रवाई पूरे अभियान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़ी कर रही है।


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